डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग एवं अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक 2018 से खतरा #SaveOurPrivacy
संसद के चल रहे शीतकालीन सत्र में सरकार डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग एवं अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक 2018 को पारित करना चाहती है। यह विधेयक अनेक मामलों में समस्यात्मक है तथा निजता के मौलिक अधिकार का हनन करता है। परिणामस्वरूप, इसका व्यापक स्तर पर विरोध होने लगा है। इससे पहले, विधेयक को 9 अगस्त 2018 को संसद के मॉनसून सत्र में पेश किया गया था। इस विधेयक को केंद्रीय कैबिनेट ने 4 जुलाई को मंजूरी दी थी। यह विधेयक आपराधिक मामलों की तहकीकात के लिए सरकारी एजेंसियों को डीएनए के नमूने (सैंपल) को इकठ्ठा करने, डीएनए प्रोफाइल बनाने, और एक विशेष प्रकार का डीएनए डाटा बैंक बनाने का अधिकार प्रदान करता है।
क्या हैं मुख्य खामियां?
- विधेयक के प्रारूप के अनुसार, डीएनए रेगुलेटरी बोर्ड में किसी ‘विशिष्ट व्यक्ति’ को बोर्ड का उपाध्यक्ष बनाया जा सकता है। इसके अलावा, किसी एक ‘विशेषज्ञ’ को बोर्ड का सदस्य बनाने का प्रावधान भी है। इन दोनों प्रमुख पदों के लिए पात्रता परिभाषित नहीं की गई है, जिससे इसके दुरूपयोग की पूर्ण संभावना है। किसी भी अयोग्य या पक्षपाती व्यक्ति को बोर्ड का उपाध्यक्ष तथा सदस्य बनाया जा सकता है।
- यह विधेयक डीएनए डेटा की सुरक्षा और डीएनए धारकों की निजता को किसी भी रूप में सुनिश्चित नहीं करता है। विधेयक का प्रारूप डेटा कलेक्टर्स और डेटा प्रोसेसर्स को डेटा की सुरक्षा करने के लिए किसी भी रूप में बाध्य नहीं करता है।
- डीएनए विधेयक डीएनए रेगुलेटरी बोर्ड को व्यापक शक्तियां प्रदान करता है तथा इसे न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखता है। इससे बोर्ड के अनियंत्रित होने की आशंका बढ़ जाती है।
- यह विधेयक डेटा सब्जेक्ट्स (जिनके डीएनए का डेटा संकलित किया गया है) को यह जानने का अधिकार प्रदान नहीं करता है कि किस-किस ने, कौन से कार्यों के लिए, किन रूपों में उनके डेटा का प्रयोग किया है। इसका अर्थ यह है कि एक बार डीएनए डेटा के संकलित होने पर यह अनियंत्रित रूप से विभिन्न एजेंसियों तथा व्यक्तियों की पहुँच में आ जायेगा।
- विधेयक के प्रावधानों के अनुसार, डीएनए डेटा सब्जेक्ट्स को डेटा के उपयोग होने के बाद उसे मिटाने अथवा नष्ट करने का अधिकार भी नहीं प्रदान किया गया है। डेटा के एक बार रिकॉर्ड हो जाने पर इसे कितने भी समय के लिए रखा जा सकता है।
इस बिल का विरोध क्यों करें?
- यह विधेयक डीएनए जैसी संवेदनशील डेटा को संकलित करता है जिससे व्यक्ति की प्रोफाइलिंग की जा सकती है। डीएनए से व्यक्ति के रंग-रूप के अलावा उसके गुणदोषों तथा शारीरिक विवरण का भी पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा, इसके पारित होने पर आधार की तरह एक बड़ा डेटाबेस बन जाएगा जिसका किसी भी रूप में दुरूपयोग किया जा सकता है।
- इसके अलावा, यह विधेयक केवल डीएनए की ही नहीं, बल्कि अन्य संवेदनशील जानकारियां जैसे जाति और लिंग की भी जानकारियां संकलित और संग्रहित करने का अधिकार प्रदान करता है।
- यह विधेयक निजता को किसी भी रूप में सुनिश्चित नहीं करता है और सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के विरुद्ध है जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार की व्याख्या मौलिक अधिकार के रूप में की थी।
- विधेयक का प्रारूप लॉ कमीशन के पुराने तथा समस्यात्मक रिपोर्ट पर आधारित है। यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के निजता के मौलिक अधिकार के फैसले के पहले आई थी। अर्थात, डीएनए विधेयक का वर्त्तमान समय में कोई औचित्य नहीं है तथा कानूनी रूप से भी व्यवहार्य भी नहीं है।
- वर्त्तमान समय में भारत डेटा सुरक्षा तथा निजता का कानून पारित करवाने की दहलीज पर है। ऐसे समय में यदि डीएनए विधेयक पारित हो जाता है, तो यह डेटा सुरक्षा बिल के प्रावधानों के बिल्कुल विपरीत होगा। ऐसे में सरकार दो विरोधाभासी विधेयकों पर एक साथ कैसे काम कर सकती है?
- इस विधेयक का प्रारूप तैयार करते समय जनता की कोई राय नहीं मांगी गई थी। इसके अलावा, इसे पास करवाने के लिए डीएनए व्यापर से जुड़ी बहुत सी बहुराष्ट्रीय कंपनियां लॉबिंग कर रही हैं। गॉर्डोन हनीवेल जैसी कंपनियां - जिनका डीएनए किट बेंचने का बड़ा कारोबार है, लॉबिंग कर रही हैं जिससे यह विधेयक पास हो और वह सरकार को भारी मात्रा में वे डीएनए किट बेंच पाए।